महामृत्युंजय मंत्र की महिमा, लाभ और विधि

भगवान मृत्युंजय(शिव) के जप से मार्केण्डय जी, राजा श्वेत आदि के काल-भयनिवारण की कथा शिवपुराण, स्कंदपुराण व् पद्भपुराण में आती है आयुर्वेद के ग्रंथों में भी मृत्युंजय योग मिलते हैं मृत्यु को जीत लेने के कारण ही इस मंत्र को "मृत्युंजय मंत्र" कहा जाता है

साधक को चाहिए कि किसी पवित्र स्थान में स्नान, आचमन, प्राणायाम,गणेश स्मरण, पूजन-वंदन के बाद तिथि व् वार आदि का उच्चारण करते हुए इस प्रकार संकल्प करे:

  अमुकोहं(अपना नाम) अमुकवासरादौ स्वस्य(यजमानस्य वा) निखिलारिष्ट निवृत्तये महामृत्युंजयमंत्रजपंकरिष्ये

तत्पश्चात हाथ में जल लेकर इस प्रकार न्यासादि करना चाहिए :

ॐ अस्य श्रीमहामृत्युंजयमंत्रयस्य वामदेवक होलवासिष्ठा

ऋषयः पन्क्तिगायत्र्युष्णिगनुष्टु भश्छन्दांसि,

सदाशिवमहामृत्युञ्जय - रुद्रो देवता, हीं शक्तिः, श्रीं बीजं,

महामृत्युञ्जयप्रीतये  ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः

उपरोक्त मंत्र कह कर हाथ का जल छोड़ दें|

महामृत्युंजय के जप में ध्यान परमावश्यक है शिवपुराण में इस प्रकार का ध्यान करने के लिए कहा गया है :

हस्ताम्भोज युगस्थ कुंभ युगला दुद्धृत्य तोयं शिरः

सिंचंतं करयोर्युगेन दधतं स्वांके सकुंभौ करौ ।। 

अक्षस्रड् मृगहस्तमम्बुजगतं मूर्द्धस्थ चन्द्रस्रवत् । 

पीयूषोन्नतनुं भजे सगिरिजं मृत्युञ्जयं त्र्यम्बकम् ।।



अर्थात भगवान मृत्युंजय के आठ हाथ हैं वे अपने ऊपर के दोनों कर कमलों से जल से भरे घड़े उठाकर नीचे के दोनों हाथों से जल को अपने सर पर उड़ेल रहे हैं सबसे नीचे के दो हाथों में भी दो घड़े लेकर उन्हें अपनी गोद में रखे हुए हैं शेष दो हाथों में वे रुद्राक्ष की माला तथा मृगी-मुद्रा धारण किये हुए हैं वे कमल के आसन पर बैठे हुए हैं और उनके शीश पर स्थित चन्द्रमा की अमृत वृष्टि से उनका शरीर भीगा हुआ है उनके तीन नेत्र हैं तथा उन्होंने मृत्यु को सर्वथा जीत लिया हैउनके वामभाग में गिरिराजनंदिनी भगवती उमा  विराजमान हैं

इस प्रकार ध्यान करके रुद्राक्ष की माला से निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए:

ॐ हौं जूं सः ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्‌। उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌। ॐ स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं हौं ॐ ॥

यह सम्पुटित महामृत्युंजय मंत्र है इस मंत्र का सवा लाख जप सर्वार्थ साधक माना गया है इसका अर्थ इस प्रकार है:- 

मैं ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र - इन तीनों के उत्पादक - पिता उन परब्रह्म परमात्मा की वंदना करता हूँ, जिनका यश तीनों लोकों में फैला हुआ है और जो विश्व के बीज एवं उपासकों के अणिमादि ऐश्वर्यों के वर्धक हैं वे अपने मूल से पृथक हुए ककड़ी के फल की तरह मुझे मृत्यु या मृत्युलोक से मुक्त कर अमृतत्व प्रदान करें 

यही मंत्र संजीवनी नाम से भी विख्यात है आये दिन, जबकि जीवन बहुत जटिल हो गया है और दुर्घटनाएं प्रतिदिन हुआ करती हैं, इस मंत्र के द्वारा सर्पदंश, बिजली, मोटर दुर्घटना तथा अन्य सभी प्रकार की दुर्घटनाओं से जीवन की रक्षा हो सकती है इसके अतिरिक्त यह मंत्र रोगों का भी निवारण करता है भाव, श्रद्धा तथा भक्ति के साथ इस मंत्र के जप द्वारा ऐसी भयंकर व्याधियों का नाश हो जाता है जिन्हे डॉक्टरों ने असाध्य बता दिया हो इस मंत्र से मृत्यु पर भी विजय प्राप्त हो सकती है यह मोक्ष का भी साधक है और दीर्घायु, शांति, धन-संपत्ति, तुष्टि तथा सद्गति भी प्रदान करता है

 व्यधिनाश के लिए लघु मृत्युंजय जप 

ॐ जूं सः(जिसके लिए जप किया जा रहा है उसका नाम) पालय पालय सः जूं ॐ

उपरोक्त मंत्र का ११ लाख जप तथा एक लाख दस हजार दशांश जप करने से सब प्रकार के रोगों का नाश होता है यदि इतना जप न हो सके तो काम-से-काम सवा लाख जप और दशांश जप अवश्य करना चाहिए

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